कुछ ही पल में उस घायल की मौत हो जाती है पता करने पर मालूम हुआ की वह पास की ही एक गांव में रहने वाली बुजुर्ग का एक लौता सहारा था और जंगल से लकडिया चुन कर बेचता और जो मिलता उसी से अपना और अपनी माँ का पेट भरता था।
कुतबुद्दीन उसकी माँ के पास गया, बताया की उसके तीर से गलती से उसके बेटे की मौत हो गई है माँ रो रो कर बेहोश हो गयी फिर कुतबुद्दीन ने खुद को क़ाज़ी के हवाले किया और अपना जुर्म बताते हुए आपमें खिलाफ मुकदमा चलाने की अर्ज़ी दी।
काज़ी ने मुकदमा शुरू किया बूढी माँ को अदालत में बुलाया और कहा की तुम जो सज़ा कहोगी वही सज़ा इस मुज़रिम को दी जायगी वृध्दा ने कहा की ऐसा बादशाह फिर कहा मिलेगा जो अपनी ही सल्तनत में अपने खिलाफ मुकदमा चलवाय और उस गलती के लिए जो उसने जानबुज कर नहीं की
आज से कुतबुद्दीन ही मेरा बेटा है
में इसे माफ़ करती हूँ।
क़ाज़ी ने कुतबुद्दीन को बरी किया और कहा - अगर तुमने अदालत में ज़रा भी अपनी बादशाहत दिखाई होती तो में तूम्हे उस बुढ़िया के हवाले न करके खुद ही सख्त सज़ा देता
इस पर कुतबुद्दीन ने अपनी कमर से तलवार निका ल कर काज़ी को दिखते हुए कहा - अगर तुमने मुझसे मुजरिम तरह व्यवहार न करके ज़रा भी मेरी बादशाहत का ख्याल किया होता तो में तुम्हे इसी खंज़र से मौत के घाट उतार देता
1 Comments
Nice
ReplyDeleteThank you for the comment